Breastfeeding & Lactation
26 October 2023 को अपडेट किया गया
Medically Reviewed by
Dr. Sweta Bajaj
Lactation Consultant, Child Birth Educator, Dentist - BDS Dentist| Certified Lactation and Infant and young child Feeding consultant, Birth educator
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ब्रेस्टफ़ीडिंग यानी कि स्तनपान न केवल बेबी की भूख को शांत करता है; बल्कि माँ और बच्चे के रिश्ते को मज़बूत भी करता है. हालाँकि, बेबी को जन्म देने के बाद कई न्यू मॉम्स के लिए अपने बेबी को स्तनपान करवाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. कई बार अच्छी लैचिंग न होने के कारण भी बेबी का पेट नहीं भर पाता है, वहीं इसके कारण माँ को ब्रेस्ट में असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है. अगर आपको भी इसी तरह की किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो यह आर्टिकल आपके लिए है. इस आर्टिकल के ज़रिये हम आपको ब्रेस्टफ़ीडिंग और लैचिंग से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताएँगे.
स्तनपान यानी कि ब्रेस्टफ़ीडिंग में लैचिंग वह तरीक़ा है जिसके ज़रिये बेबी दूध पीने के लिए अपनी माँ से जुड़ता है. भले ही यह एक नेचुरल प्रक्रिया है लेकिन एक ऐसी स्किल भी है, जो न्यू मॉम को सीखनी चाहिए, क्योंकि इस समय बेबी अपनी भूख के लिए पूरी तरह से अपनी माँ पर निर्भर होता है. बेबी की बेहतर ग्रोथ और डेवलपमेंट के लिए शुरुआती 6 माह तक बेबी के लिए ब्रेस्टफ़ीडिंग बहुत ही ज़रूरी है. साथ ही, अगर बच्चा ठीक से लैच नहीं कर पाता है, तो इसका असर माँ के ऊपर भी होता है. माँ को ब्रेस्ट में दर्द और सूजन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
जी हाँ, लैचिंग का मिल्क सप्लाई से सीधा संबंध होता है. अच्छी तरह से लैचिंग होने पर बेबी ब्रेस्ट से ठीक तरीक़े से जुड़ पाता है, जिससे वह आराम और प्रभावी तरीक़े से दूध पी पाता है. इससे ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन बढ़ता है. वहीं, ठीक तरीक़े से लैचिंग न होने की स्थिति में ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई कम हो सकती है. पर्याप्त दूध न मिलने की स्थिति में बेबी की ग्रोथ और डेवलपमेंट पर नेगेटिव असर हो सकता है.
इसे भी देखें : ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाने वाली माँओं को क्या खाना चाहिए?
ब्रेस्टफ़ीडिंग करने के दौरान बेबी ऐसे कई संकेत देता है, जिससे पता चलता है कि वह ठीक तरीक़े से लैच कर पा रहा है या नहीं. ऐसे में ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान आपको इन संकेतों पर ग़ौर करना चाहिए;
ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान बेबी का मुँह खुला हुआ रहना
दूध पीने के दौरान बेबी एरोला के बजाय केवल निप्पल को ही चूस रहा हो
ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान माँ को ब्रेस्ट में दर्द या कोई समस्या महसूस होना
ब्रेस्टफ़ीडिंग के बाद भी बेबी का सही तरीक़े से वज़न न बढ़ना
बेबी ठीक तरीक़े से यूरिन या पॉटी न कर रहा हो
अगर आपको इनमें से कोई भी संकेत दिखाई देता है, तो इसका मतलब है कि आपको लैचिंग पर ध्यान देना होगा.
अगर बेबी ठीक से स्तनपान नहीं कर पा रहा है, तो माँ को अपनी ब्रेस्टफ़ीडिंग पॉजीशन पर ध्यान देना चाहिए. बेबी को दूध पिलाने के दौरान आप इन बातों का ध्यान रखें!
इसे भी पढ़ें : फॉर्मूला मिल्क या काऊ मिल्क: बेबी की ग्रोथ के लिए क्या है बेहतर?
बेबी की उम्र और स्थिति के आधार पर कई तरह की ब्रेस्ट पॉजीशन को ट्राई कर सकते हैं
इस पॉजीशन को सबसे कंफर्टबल पॉजीशन माना जाता है. यह न्यू मॉम्स के लिए ब्रेस्टफ़ीडिंग को आसान बनाती है. इस पोजीशन में बेबी को गोद में सुलाया जाता है या फिर पिलो की मदद से उसे ब्रेस्ट के पास लाया जाता है. इस दौरान माँ को बेबी के सिर को अपनी बांह में अच्छी तरह से कवर करना होता है. बता दें कि यह पोजीशन 0 से एक साल तक के बेबी के लिए बेस्ट है.
इस स्थिति में, बेबी को किनारे पर रखा जाता है और बेबी के पैर माँ की बाँह के नीचे दब जाते हैं. यह पोजीशन उन महिलाओं के लिए बेस्ट होती है, जिनकी डिलीवरी सी सेक्शन से हुई होती है या जिनके ब्रेस्ट का साइज़ ज़्यादा होता है.
अगर आधी रात में बेबी को भूख लगती है, तो आप इस पोजीशन में अपने बेबी को दूध पिला सकते हैं. इस स्थिति में आप और आपका बेबी दोनों ही एक करवट लेकर सो सकते हैं. आप अपने दूसरे हाथ से बेबी को सहला सकते हैं.
उम्मीद है कि अब आप समझ गए होंगे कि बेबी को स्तनपान करवाने के दौरान लैचिंग का क्या महत्व होता है. साथ ही, यह न सिर्फ़ बेबी; बल्कि माँ की सेहत के लिए भी ज़रूरी है.
स्तनपान यानी कि ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान लैचिंग का बहुत ही महत्व होता है. अगर बेबी ठीक से दूध नहीं पी पाता है, तो एक बार आपको अपने डॉक्टर से ज़रूर बात करना चाहिए.
रेफरेंस
1. Goyal RC, Banginwar AS, Ziyo F, Toweir AA. (2011). Breastfeeding practices: Positioning, attachment (latch-on) and effective suckling - A hospital-based study in Libya.
2. Joshi H, Magon P, Raina S. (2016). Effect of mother-infant pair's latch-on position on child's health: A lesson for nursing care.
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Jyoti Prajapati
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