Getting Pregnant
23 October 2023 को अपडेट किया गया
बीते कुछ सालों में गर्भधारण की उम्र में काफ़ी बदलाव आया है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं; जैसे कि देर से शादी करना या फिर कोई आर्थिक समस्या होना, आदि. हालाँकि, बढ़ती उम्र का असर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर होता है. चलिए इस आर्टिकल के ज़रिये जानते हैं कि उम्र का प्रेग्नेंसी से क्या कनेक्शन होता है. साथ ही, 35 की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान करने पर किस तरह के कॉम्प्लिकेशन होते हैं. लेकिन उससे पहले जानते हैं कि यह एडवांस मैटरनल ऐज (Advanced maternal age in Hindi) क्या होती है!
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एक महिला की फर्टिलिटी एज अपने पहले पीरियड्स यानी कि 12 से 13 साल की उम्र से शुरू हो जाती है. जैसे-जैसे एक महिला की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे उसकी प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. इसका मतलब यह है कि एक तय समय के बाद एक महिला के लिए गर्भधारण की संभावना या तो कम हो जाती है या फिर बिल्कुल ही खत्म हो जाती है. आजकल महिलाएँ 30 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान करने के बारे में सोचती हैं. कुछ मामलों में तो यह उम्र 35 से 40 भी होती है. इस स्थिति को एडवांस्ड मैटरनल ऐज कहा जाता है.
उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं की ओवरीज में बनने वाले एग्स की क्वालिटी और क्वांटिटी पर असर होता है, जिसका सीधा असर गर्भधारण की संभावनाओं पर होता है. हालाँकि, आईयूआई, आईवीएफ, आईसीएसआई जैसे फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को चुनकर 40 की उम्र के बाद भी उम्मीद की किरण होती है.
जब एक महिला 35 की उम्र के बाद यानी कि एडवांस्ड मैटरनल ऐज में प्रेग्नेंसी प्लान करने के बारे में सोचती हैं, तो उसे प्रेग्नेंसी में कई प्रकार के कॉम्प्लिकेशन; जैसे कि हाई बीपी, डायबिटीज, थायराइड, आदि का सामना करना पड़ सकता है और इसका असर होने वाले बच्चे पर भी हो सकता है. इस उम्र में प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना ज़रूरी हो जाता है. वहीं, 40 की उम्र में गर्भधारण पर करने पर प्रेग्नेंसी में और अधिक कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि एडवांस्ड मैटरनल ऐज गर्भधारण करने पर क्या कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं!
उम्र बढ़ने के साथ ही एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का खतरा भी बढ़ जाता है. एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में फर्टिलाइज एग गर्भाशय से जुड़ने के बजाय फैलोपियन ट्यूब, एब्डोमिनल कैविटी या गर्भाशय ग्रीवा से जुड़ जाता है. इस तरह यह प्रेग्नेंसी अस्थायी तौर पर रहती है.
हाई बीपी होने के कारण प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं, इसे प्रीक्लेम्पसिया कहा जाता है. अगर यह समय रहते यह नियंत्रित नहीं होता है, तो बहुत सारे अंग विफल हो सकते हैं.
अधिक उम्र होने पर प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा भी बढ़ सकता है, जिसका असर गर्भ में पल रहे बेबी पर भी होता है. ऐसी स्थिति में बेबी का आकार औसत से अधिक हो सकता है.
अधिक उम्र में गर्भधारण होने पर समय से पहले डिलीवरी होने का खतरा बढ़ जाता है. दरअसल, इस समय हाई बीपी का खतरा अधिक होता है, जिसके चलते गर्भ में बेबी का ठीक तरीक़े से विकास नहीं हो पाता है और प्री-टर्म डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है.
लेट प्रेग्नेंसी होने पर होने वाले बच्चे को कई अनुवांशिक असामान्यताओं का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, इस उम्र में महिलाओं की फर्टिलिटी क्षमता कमज़ोर होने लगती है, ऐसे में बच्चे को कुछ जन्मजात शारीरिक, मानसिक या विकासशील विकलांगता का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा, इस समय मिसकैरेज की आशंका अधिक होती है.
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. ऐसा नहीं है कि 35 के बाद गर्भधारण नामुमकिन है. बेबी को कब जन्म देना है और कब नहीं यह पूरी तरह से एक कपल का निजी मामला होता है. 35 की उम्र तक आमतौर पर हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बेहतर हो जाती है. ऐसे में इस समय प्रेग्नेंसी प्लान करने आप बेहतर तरीक़े से बाक़ी चीज़ों को मैनेज कर सकते हैं. आप हर बात और स्थिति को बेहतर तरीक़े से समझने लगते हैं. अपने पार्टनर से बात करें. ध्यान रखें, इस समय उनका आपके साथ होना बहुत ज़रूरी है.
1. Lean SC, Derricott H, Jones RL, Heazell AEP. (2017). Advanced maternal age and adverse pregnancy outcomes: A systematic review and meta-analysis.
2. Palatnik A, De Cicco S, Zhang L, Simpson P, Hibbard J, Egede LE. (2020). The Association between Advanced Maternal Age and Diagnosis of Small for Gestational Age. Am J Perinatol.
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Written by
Jyoti Prajapati
Jyoti is a Hindi Content Writer who knows how to grip the audience with her compelling words. With an experience of more
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