Baby Care
21 August 2023 को अपडेट किया गया
शुरुआती 6 महीनों तक स्तनपान (ब्रेस्टफ़ीडिंग) माँ और बच्चे दोनों की सेहत के लिए बहुत ज़रूरी होता है. लेकिन हर माँ के लिए स्तनपान करवाना इतना आसान नहीं होता है. कई ऐसी महिलाएँ होती हैं, जिन्हें ठीक तरीक़े से दूध नहीं उतरता है. मेडिकल भाषा में इसे लो मिल्क सप्लाई (Low milk supply) कहा जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे का पेट नहीं भर पाता है, और वहीं दूसरी ओर माँ को भी ब्रेस्ट दर्द का सामना करना पड़ता है. चलिए इस आर्टिकल के ज़रिये डिटेल में जानते हैं कि आख़िर लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई के क्या कारण होते हैं और इससे कैसे निपटा जा सकता है.
जब ब्रेस्ट में बच्चे की पोषण संबंधित ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध का प्रोडक्शन नहीं होता है, तो इस स्थिति को लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई कहा जाता है. यह स्थिति माँ और बच्चे दोनों के लिए ठीक नहीं होती है. इसका असर बेबी की ग्रोथ और डेवलपमेंट पर होता है, क्योंकि पर्याप्त मात्रा में दूध न मिलने के कारण बच्चे का वज़न नहीं बढ़ता है. वहीं माँ को ब्रेस्ट या निप्पल में दर्द और सूजन का सामना करना पड़ता है.
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लो मिल्क सप्लाई के कई कारण हो सकते हैं; जैसे कि
कुछ महिलाओं में नेचुरल तौर पर ही ब्रेस्ट मिल्क को प्रभावित करने वाले कम टिशू होते हैं. इसके कारण ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन ठीक तरीक़े से नहीं हो पाता है. ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन डिमांड और सप्लाई सिद्धांत पर काम करता है. इसका मतलब यह है कि बेबी को जितनी बार ब्रेस्ट के पास लाया जाएगा, दूध का प्रोडक्शन होने की प्रक्रिया उतनी बार होने लगेगी. इससे माँ की बॉडी को एक सिग्नल मिलता है.
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) और थायराइड जैसी हार्मोन्स से संबंधित समस्याएँ भी लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई का कारण बनती हैं.
कई बार जब माँ अधिक तनाव या थकान महसूस करती है, तो इसका असर भी ब्रेस्ट मिल्क पर पड़ने लगता है. इसके कारण भी लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई होने लगता है.
कुछ मेडिसिन या मेडिकल कंडीशन भी ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई को प्रभावित कर सकती हैं. ब्रेस्ट सर्जरी, डायबिटीज जैसे कारण का भी लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई होने लगता है.
बेबी को जल्दी फॉर्मूला मिल्क या सॉलिड फूड्स देने से भी ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई पर असर होता है, क्योंकि ऐसा होने पर बेबी ब्रेस्ट मिल्क में कम रुचि लेने लगता है.
रात के समय में प्रो लेक्टिन लेवल बढ़ जाता है. यह एक हार्मोन है, जो ब्रेस्ट को और दूध बनाने का सिग्नल देता है. ऐसे में जो महिलाएँ बेबी को रात में ब्रेस्टफ़ीडिंग नहीं करवाती हैं, उन्हें लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई का सामना करना पड़ता है.
समय से पहले बेबी का जन्म होने पर भी ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई पर असर होता है. प्री मैच्योर डिलीवरी के कारण ब्रेस्ट मिल्क का प्रोडक्शन कम हो सकता है.
इसे भी पढ़ें : फॉर्मूला मिल्क या काऊ मिल्क: बेबी की ग्रोथ के लिए क्या है बेहतर?
लो ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई के कई संकेत होते हैं. इनमें से कुछ आम हैं;
अगर आप भी लो मिल्क सप्लाई का सामना कर रहे हैं, तो आप इन नेचुरल तरीक़ों पर ग़ौर कर सकते हैं
आप जितनी बार बेबी को ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाते हैं, उतनी बार आपकी बॉडी को अधिक ब्रेस्ट मिल्क प्रोड्यूस करने के सिंग्नल मिलते हैं. इसलिए कोशिश करें आप 24 घंटे में कम से कम 8 से 12 बार अपने बेबी को दूध पिलाएँ.
इफेक्टिव तरीक़े से मिल्क प्रोडक्शन के लिए बेबी का सही तरीक़े से लैच करना बहुत ही ज़रूरी है. इसलिए ध्यान रखें ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान बेबी सिर्फ़ निप्पल को ही न चूसे. इसकी बजाय उसे एलोरा को कवर करना चाहिए.
बेबी को एक ब्रेस्ट से दूसरे ब्रेस्ट पर स्विच करने से पहले ध्यान रखें कि ब्रेस्ट मिल्क अच्छी तरह से खाली हो गया हो. इससे ब्रेस्ट मिल्क प्रोडक्शन बढ़ता है.
ब्रेस्टफ़ीडिंग करवाने वाली मॉम्स के लिए डाइट बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. इसलिए आप संतुलित डाइट फॉलो करें. प्रोटीन युक्त आहार जैसे कि हरी सब्ज़ी, अंडा, मछली, दूध, नट्स आदि को दिन में 2 से बार 3 बार खाएँ. साथ ही, पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहें. इसके साथ ही, साबुत अनाज जैसे दाल, ओटमील भी ब्रेस्टमिल्क बढ़ाने में मदद करते हैं.
स्किन-टू-स्किन टाइम पर ध्यान दें. बेबी को अपने सीने से लगाएँ. ऐसा करने से ब्रेस्ट मिल्क प्रोडक्शन को बढ़ाने वाले हॉर्मोन्स रिलीज़ होते हैं. साथ ही, बेबी के साथ आपका रिश्ता भी मजबूत होगा.
आप ब्रेस्टफ़ीडिंग सेशन के दौरान पम्पिंग भी कर सकते हैं. आप ब्रेस्टफ़ीडिंग के बाद 10 से 15 मिनट तक पम्पिंग कर सकते हैं.
शुरुआती कुछ हफ़्तों में पैसिफायर और बॉटल का इस्तेमान कम से कम करें, क्योंकि इसके उपयोग से बेबी ब्रेस्ट मिल्क में कम रुचि लेता है.
ज़रूरत पड़ने पर आप लैक्टेशन कंसल्टेशन, ब्रेस्टफ़ीडिंग सपोर्ट ग्रुप या अनुभवी हेल्थकेयर प्रोफेशनल से मिलें. याद रखें मदद लेने में संकोच न करें.
ब्रेस्टफ़ीडिंग का सफ़र बहुत ही ख़ूबसूरत होता है. इस दौरान आपको और बेबी का रिश्ता मज़बूत होता है. इसलिए इस समय का आनंद लें. हेल्दी डाइट फॉलो करें, टेंशन फ्री रहें और अपना ख़ूब ख़्याल रहें. ध्यान रखें कि अगर आप हेल्दी रहेंगी तो आप अपने बेबी का बेहतर तरीक़े से ख़्याल रख पाएँगी.
रेफरेंस
1. Institute of Medicine (US) Committee on Nutritional Status During Pregnancy and Lactation. (1991). Nutrition During Lactation.
2. Huang Y, Liu Y, Yu XY, Zeng TY. (2022). The rates and factors of perceived insufficient milk supply: A systematic review.
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Written by
Jyoti Prajapati
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