Labour & Delivery
1 December 2023 को अपडेट किया गया
प्रेग्नेंसी एक जिंदगी को दुनिया में लाने की सुंदर यात्रा है. आख़िरकार आप जिंदगी का नया अध्याय शुरू करने के लिए तैयार हैं. हालांकि, कुछ खास मौकों के चलते जीवन का ये समय चिंताओं से भी भरा होता है. ज्यादातर महिलाएं प्रेग्नेंसी के समय सोचती हैं कि क्या बेहतर है: नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी? हालांकि, हर प्रक्रिया के अपने हानि और लाभ होते हैं. वेजिनल और हार्मोनल डिलीवरी जन्म का नेचुरल तरीका है. ये अच्छा रहता है कि नॉर्मल बनाम सिजेरियन डिलीवरी (caesarean section meaning in Hindi) की अच्छाई और बुराई के बारे में डॉक्टर से परामर्श ले लिया जाए. क्योंकि हर महिला अलग होती है, सिजेरियन बनाम नॉर्मल डिलीवरी के फायदे स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं.
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नॉर्मल या वेजिनल डिलीवरी एक नेचुअल प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बच्चे का जन्म होता है. इस प्रक्रिया के दौरान गर्भाशय ग्रीवा पतला होने के साथ खुलता है और गर्भाशय बच्चे को बर्थ कैनाल में भेजने और वेजिना से बाहर करने के लिए सिकुड़ता है. सिजेरियन या सी सेक्शन डिलीवरी (c section delivery in Hindi) एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें बच्चे का जन्म मां के पेट में कट करके होता है न कि वेजिना से. क्योंकि ये एक बड़ी एबडॉमिनल प्रक्रिया है, इसलिए नियोजित या अनियोजित या फिर आपातकालीन सिजेरियन हो सकता है.
इसका कोई एक जवाब नहीं है क्योंकि ये कई सारे तथ्यों पर निर्भर करता है. हालांकि सी-सेक्शन एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन कुछ खास खतरों के साथ ये एक बड़ा ऑपरेशन होता है. इसलिए डॉक्टर जब तक मेडिकल कारणों से जरूरी न हो, सिजेरियन (c section meaning in Hindi) कराने की सलाह नहीं देते हैं.अगर प्रेग्नेंसी या लेबर में कोई दिक्कत न हो तो वेजिनल बर्थ सी-सेक्शन के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होती है. और ये सिर्फ आपकी अभी की प्रेग्नेंसी के लिए ही नहीं बल्कि भविष्य में होने वाले गर्भधारणों के लिए भी सच है. नार्मल डिलीवरी भविष्य की फर्टिलिटी के लिए भी बेहतर है.
कभी-कभी, बच्चे और मां की जान बचाने के लिए सी-सेक्शन की जरूरत होती है. इस मामले में बिना किसी शक के आप और आपके बच्चे के लिए सिजेरियन सुरक्षित विकल्प होता है. हालांकि अगर आपके लेबर उठ तो रहे हैं लेकिन बढ़ नहीं रहे हैं तो आपके डॉक्टर सी सेक्शन (c section delivery in Hindi) का सुझाव दे सकते हैं. आपके डॉक्टर ऐसा आप और आपके बच्चे की स्थिति को देखने के बाद करेंगे. आपके डॉक्टर लेबर के दौरान बच्चे के दिल की धड़कनों को मॉनिटर करके उनकी स्थिति भी जान सकते हैं.
कुछ परिस्थितियों में, डॉक्टर आपको लेबर बढ़ाने या सी-सेक्शन के बीच चुनाव करने का मौका दे सकते हैं. बढ़े हुए लेबर के बाद आपको वैक्यूम या फॉरसेप्स के साथ असिस्टेड बर्थ की आवश्यकता पड़ सकती है. लेकिन इसके साथ कई खतरे हो सकते हैं. इसलिए आप और आपके डॉक्टर को इन खतरों और सिजेरियन में हो सकने वाले खतरों के बारे में सोचना-समझना होगा.
कई बार ऐसा भी होगा जब निर्णय साफ़ नहीं होगा. आप और आपके डॉक्टर को सिजेरियन से जुड़े फायदों और नुकसानों के बारे में सोचना होगा. इसके बाद आप निर्णय लीजिए कि आपके लिए क्या बेस्ट होगा. इन फैक्ट्स को जानने के बाद आप तैयारी कर पाएंगी क्योंकि ये सबकुछ बच्चे के जन्म या लेबर से पहले हो सकता है.
1. क्या आपका वजन जरूरत से ज्यादा है या आप ओबेसिटी की शिकार हैं?
2. क्या आपके पेट में पहले भी सर्जरी हुई हैं?
3. आपको पहले से कई बीमारी हैं जैसे दिल की बीमारी.
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दर्द का अहसास कैसा होता है, इसको तब तक नहीं कहा जा सकता है, जब तक आप बच्चे को जन्म नहीं दे देती हैं. बच्चे का जन्म सभी के लिए अलग-अलग हो सकता है. आपने लेबर के दर्द के बारे में कई बार कल्पना की होगी. लेकिन सी-सेक्शन की सबसे बड़ी कमी दर्द है जो डिलीवरी के बाद होता है न कि प्रक्रिया के दौरान.
हो सकता है कि आपको सर्जरी के बाद कुछ घंटों के लिए ड्रिप दी जाए ताकि आपको जरूरत पड़ने पर पेनकिलर्स दी जा सकें. चोट सही होने के दौरान शुरुआती कुछ दिनों में इसमें दर्द और शुरू के कुछ हफ्तों में आपको पेट में दिक्कत महसूस हो सकती है. वेजिनल बर्थ की तुलना में इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लग सकता है. दरअसल इस प्रक्रिया में सर्जरी के बाद ठीक होने में कुछ दिनों के लिए पेनरिलीफ टैबलेट की जरूरत पड़ती है.
सिजेरियन डिलीवरी (c section meaning in Hindi) के साइड इफेफक्ट्स की वजह से कुछ महिलाओं को सिर में दर्द और गर्दन के साथ एपीड्यूरल या स्पाइनल वाले एरिया के लोवर बैक में दर्द हो सकता है. डॉक्टर को ये बताया जाना जरूरी है क्योंकि हो सकता है वो दवाइयों के साथ आपको आराम देने में मदद कर सकें.
कई माएं लेबर वाले दर्द से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी ही चाहती हैं. तब भी ये जानना जरूरी है नॉर्मल डिलीवरी का दर्द सिजेरियन के मुकाबले काफी कम समय के लिए होता है. सिजेरियन डिलीवरी आपके रोजमर्रा के कामों को भी प्रभावित कर सकती है. इसके साथ कुछ महिलाओं में सर्जरी के बाद कुछ महीनों तक पेट के हिस्से में दिक्कत महसूस हो सकती है.
ये उस समय की परिस्थिति पर निर्भर करेगा. आगर आपके बच्चे की अम्बिलिकल कॉर्ड उसके गले में बंध जाती है तो आपके डॉक्टर इस समस्या पर आपका ध्यान जाने से पहले ही इसे हल कर देंगे. क्योंकि ये एक आम समस्या है तो इससे आपको या आपके बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होगी.
बिना किसी समस्या के जन्म के दौरान अक्सर किसी का अम्बिलिकल कॉर्ड पर ध्यान नहीं जाता है. लेकिन अगर डॉक्टर देखते हैं कि सिर बाहर आने के बाद नाल बच्चे की गर्दन के इर्द-गिर्द बंधी हैं तो वो इसे आसानी से ठीक कर देते हैं. डॉक्टर बस नाल को ढीला कर देते हैं ताकि बच्चे के कंधे इससे निकल सकें. या फिर डॉक्टर नाल को बच्चे के सिर से निकाल देते हैं.
हालांकि, ऐसे दो उदाहरण हैं जहां नाल बच्चे की गर्दन में बंधेगी तो समस्या भी बन सकती है, ये स्थितियां हैं:
· अगर नाल गर्दन पर सख्ती से बंधी हों.
· अगर कोई चीज रक्त को गर्भनाल से बहने से रोक रही हो.
अगर नाल गर्दन पर सख्ती से बंधी हुई है तो आपका डॉक्टर बच्चे के कंधों के बाहर आने से पहले दबाकर नाल को काट सकता है.
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सिजेरियन के दौरान और उसके बाद में, दोनों ही परिस्थितियों में आपका बच्चा ठीक ही रहता है. हालांकि सी-सेक्शन से पैदा होने वाले बच्चों को नार्मल पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में नियोनटल केयर में रहने की ज्यादा जरूरत होती है. इसके साथ ही कई बच्चों को जन्म के बाद सांस लेने में भी दिक्कत होती है. सी-सेक्शन के बाद सांस से जुड़ी दिक्कतें गंभीर नहीं होती हैं. लेकिन कई बार बच्चों को ठीक होने के लिए खास देखभाल की जरूरत होती है. सिजेरियन के माध्यम से समय से पहले पैदा हुए बच्चे और सिजेरियन से पैदा हुए बच्चों
सिजेरियन से समय से पहले पैदा हुए बच्चे और गर्भावस्था के 39 सप्ताह से पहले सिजेरियन से पैदा हुए बच्चे आमतौर पर सांस लेने से जुड़ी दिक्कत का सामना करते हैं.
कई बार सर्जरी के लिए इस्तेमाल होने वाले डॉक्टर के इंस्ट्रूमेंट स्केल्पेल से बच्चे के कट लग सकता है लेकिन ये बिना किसी नुकसान के ठीक हो जाता है. इसके साथ ही आगे के समय में सिजेरियन से पैदा होने वाले बच्चों में अस्थमा होने की संभावना भी हो सकती है.
क्योंकि सी-सेक्शन बड़ी एब्डॉमिनल सर्जरी है, इसमें कुछ दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे:
सर्जरी में जरूरत से ज्यादा ब्लीडिंग हो जाना सीजेरियन से जन्म के दौरान होने वाला बड़ा खतरा है. क्योंकि ज्यादातर ब्लीडिंग सर्जरी के समय होती है, आपके डॉक्टर इसको संभाल लेते हैं. अगर बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है, जो कि असामान्य है तो आपको खून लेने की आवश्यकता भी हो सकती है.
सर्जरी से पहले संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए आपको एंटीबायोटिक की एक खुराक दी जाएगी. फिर भी कुछ महिलाओं को संक्रमण हो सकता है और ऐसे तीन खास संक्रमण हैं:
1. आपकी चोट के संक्रमण में लालपन, डिस्चार्ज, बहुत दर्द और यहां तक कि टांके खुलने की समस्या भी हो सकती है.
2. गर्भाशय के किनारों पर हुए संक्रमण को इंडोमेट्रियोसिस कहते हैं. इसके लक्षण में शामिल है बहुत ब्लीडिंग,बदबूदार डिसचार्ज और जन्म के बाद बुखार. ये अक्सर तब होता है, जब लेबर शुरू होने से पहले वॉटर ब्रेक हो जाए या फिर आपके कई वेजिनल एक्जामिनेशन हुए हों.
3. यूनरीट्रेक्ट इंफेक्शन. एक पतले ट्यूब या कैथिटर को ब्लैडर खाली करने के लिए आपमे इंसर्ट किया जाता है, जिसकी वजह से संक्रमण हो सकते हैं. कैथिटर को कम से कम 12 घंटों के लिए अंदर ही छोड़ दिया जाता है या फिर जब तक आप चलने-फिरने न लगें. इसके लक्षणों में शामिल हैं पेट या ग्रोइन में हल्का दर्द, उच्च तापमान, ठंड लगना, भ्रम और पेशाब करने में कठिनाई.
कोई भी सर्जरी खून का थक्का बनाने की संभावना को बढ़ा देती है. इस मकसद से, सर्जरी के तुरंत बाद आपको उठने के लिए भी प्रेरित किया जाता है. इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और खून का थक्का बनने की संभावना भी कम होती है. थक्का किस हिस्से में बना है, इस आधार पर ये समस्या गंभीर हो सकती है. अगर थक्का फेफड़ों में बन जाता है तो ये गंभीर भी हो सकता है. परेशानी के कुछ लक्षणों में कफ, सांस लेने में दिक्कत या पिंडली में सूजन शामिल हैं.
पेल्विक रीजन के किसी भी दूसरे ऑपरेशन की तरह सिजेरियन में भी ठीक होने के दौरान ऐड्हीश़न का ख़तरा रहता है. ऐड्हीश़न स्कार टिशू के बैंड होते हैं जो आपके एबडॉमन में अंगों को आपस में या फिर पेट के अंदर चिपका कर रखते हैं. ऐड्हीश़न कई बार दर्द देने वाले होते हैं क्योंकि ये आपके अंदरूनी अंगों के मूवमेंट को रोकते हैं. अगर ये पास के अंगों पर दबाव बनते हैं तो इनकी वजह से कई बार परेशानी हो सकती है जैसे बोवल कंस्ट्रक्शन और फर्टिलिटी.
ज्यादातर सिजेरियन बिना जनरल एनेसथेटिक के किए जाते हैं, जिनसे नींद आती है. इसकी जगह एपीड्यूरल या स्पाइनल को पेट सुन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही आप और आपके बच्चे के लिए एपीड्यूरल, जनरल एनेसथेटिक के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होता है. एपीड्यूरल के साथ कुछ खतरे भी जुड़े होते हैं जैसे सिर दर्द और नर्व डैमेज.
चाहे पहले से सी-सेक्शन की योजना बनाई गई हो या फिर लेबर हो रहे हों, वो महिलाएं जिनकी वेजिनल डिलीवरी होती है वो सी-सेक्शन वाली मांओं की तुलना में डिलीवरी के बाद जल्दी डिस्चार्ज होती हैं. सिजेरियन के मामले में आपको 3 से 5 दिन हॉस्पिटल में ही रुकना होता है.
आमतौर पर, आपके निशान पतले होने के साथ ज्यादा सफ़ेद हो जाते हैं या आपकी स्किन के रंग के हो जाते हैं. हालांकि, कुछ मामलों में बॉडी उपचार की प्रक्रिया पर कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया देती है और ऐसे निशान बन जाते हैं जो जल्दी ठीक नहीं होते हैं. ये केलॉइड और हायपरट्रोफिक स्कार्स होते हैं. ये निशान मोटे हो सकते हैं तो इनमें खुजली के साथ दर्द भी हो सकता है.
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अगर सी-सेक्शन के दौरान गंभीर समस्या होती है तो आपको ब्लड लेने की जरूरत पड़ सकती है. इनमें शामिल हैं:
· आपकी आंतों या मूत्राशय में नुकसान.
· हालांकि ये बहुत ही कभी-कभी होता है, गुर्दे को मूत्राशय से जोड़ने वाली नलियों में चोट लगना.
· सी-सेक्शन के बाद इंटेंसिव केयर में भर्ती होना.
· गर्भाशय हटाने के लिए एक आपातकालीन सर्जरी होना.
· बाद के दिनों में आगे की सर्जरी होना.
अगर स्वास्थ्य से जुड़े कारणों की वजह से आपका आपातकालीन या योजना बनाकर सिजेरियन किया गया है तो आप समझेंगी कि ये आपके बच्चे के जन्म और आपके जन्म देने के लिए सबसे सुरक्षित तरीका है. एक नियोजित सी-सेक्शन की जरूरत तब पड़ सकती हैं जब बच्चा उल्टा हो या फिर प्लेसेंटा बच्चे के निकलने के मार्ग या गर्भाशय की गर्दन को कवर कर रहा हो. हालांकि, अगर आपके लेबर लंबे समय तक चलें या बच्चे को परेशानी होने लगे तो कभी-कभी आपातकालीन सी-सेक्शन की जरूरत पड़ सकती है.
सी-सेक्शन के दूसरे फायदे ये हैं कि आपने अगर नियोजित सिजेरियन का चुनाव किया है तो आप जान जाएंगी कि आपका बच्चा कब आएगा. ये जानने के बाद कि आपका बच्चा कब आएगा, आपको अपनी मैटरनिटी लीव की योजना, फैमिली से मदद और बच्चे के बाद की दूसरी जरूरतों के बारे में सोचने का समय मिल जाएगा. फिर भी आप नियोजित सी-सेक्शन से पहले लेबर में जा सकती हैं और आपको रिकवरी में अनुमान से ज्यादा समय लग सकत है.
आपको कांट्रैक्शन का दर्द भी नहीं होगा जो सी-सेक्शन डिलीवरी का अन्य फायदा है. इसके साथ आपको पेरिन्युम और वेजिना के बीच के हिस्से के फटने की चिंता नहीं करनी होगी, जो नार्मल डिलीवरी के दौरान होता है.
आपको डिलीवरी के दौरान मार्जिनल कट की जरूरत नहीं होगी. ना ही पेरिन्युम और वेजिना में खरोंच और टांकों से होने वाले दर्द का ही सामना करना होगा.
सी-सेक्शन रिकवरी आपके स्वास्थ्य और अगर कुछ दिक्कतें हैं तो उन पर निर्भर करती है, अगर आप स्वस्थ्य हैं और आपका वजन ज्यादा नहीं है तो आप सिजेरियन से जल्द रिकवर कर लेंगी. सी-सेक्शन से रिकवर करते हुए सर्जरी की वजह से नेचुरली होने वाला दर्द बड़ी समस्या होता है. लेकिन आपके डॉक्टर दर्दनिवारक दवाएं दे देंगे जो ब्रेस्टफीडिंग के दौरान भी इस्तेमाल के लिए सुरक्षित होंगी.
कई बार ब्लीडिंग और संक्रमण जैसी समस्याओं के चलते इलाज काफी कठिन हो जाता है जिसके चलते आपको हॉस्पिटल में लंबे समय तक रहना पड़ सकता है. आपने पोस्टनटल डिप्रेशन के बारे में भी सुना होगा साथ में ये भी सुना होगा कि सिजेरियन के बाद ब्रेस्टफीडिंग कठिन हो जाती है. इसकी चिंता न करें. हालांकि जल्दी होने वाला पोस्टनटल डिप्रेशन वेजिनल बर्थ वाली महिलाओं के मुकाबले उन महिलाओं में ज्यादा आम है जिनका सिजेरियन होता है.
वेजिनल बर्थ देने वाली महिलाओं के लिए ब्रेस्टफीडिंग ज्यादा बड़ी चुनौती लग सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि आरामदायक फीडिंग पोजीशन पाने में आपको बहुत मेहनत करनी पड़ सकती है. अगर आप बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना चाहती हैं तो मदद लेना जरूरी है. अस्पताल में आपका ध्यान रखने वाली नर्स से मदद और ब्रेस्टफीडिंग पर टिप्स के बारे में पूछें. इसके साथ अपने डॉक्टर से भी ब्रेस्टफीडिंग की सही पोजीशन के बारे में पूछें.
सिजेरियन के बाद इलाज वेजिनल बर्थ से अलग होता है लेकिन कुछ बातें एक जैसी हैं. सिजेरियन और वेजिनल बर्थ के बाद आपको पोस्टनटल ब्लीडिंग होगी जिसे लोशिया (lochia) कहते हैं. आपको पोस्टनटल यूरिनरी इनकॉनटीनेंस का अनुभव भी हो सकता है जो जन्म देने वाली नई मांओं के लिए आम समस्या है.
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एक बार जब सी-सेक्शन हो जाता है:
· भविष्य की प्रेग्नेंसी में, हो सकता है कि सी-सेक्शन ही हो. हालांकि ये जरूरी नहीं है, सिजेरियन के बाद नार्मल डिलीवरी संभव है.
· गर्भनाल का बहुत नीचे की ओर होने से इसके बहुत नीचे जुड़े होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसा खासतौर पर तब होता है जब पहले दो या ज्यादा सिजेरियन हो चुके हों, परेशनियों की वजह से डिलीवरी के दौरान बहुत खून निकल सकता है. इसकी वजह से ब्लड लेने की जरूरत हो सकती है साथ में हिस्टेरेक्टॉमी मतलब गर्भाशय हटाने की भी संभवाना रहती है.
· भविष्य की प्रेग्नेंसी में गर्भाशय के निशान के दोबारा खुलने का थोड़ा ही खतरा रहता है जिसे यूट्रस रैप्चर कहते हैं. अगर ये होता है तो इसका खतरा आप और आपके बच्चे की जान पर बना रहता है.
अगर सी-सेक्शन कराया है तो भविष्य की प्रेग्नेंसी में बच्चे के जन्म के बाद उसकी मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि ये आम नहीं है.
जिस तरह की डिलीवरी आपके लिए अच्छी होगी, वो कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, जैसे:
· आपका मेडिकल रिकॉर्ड
· आपके बच्चे का स्वास्थ्य
· गर्भाशय में आपके बच्चे की स्थिति
· आपके गर्भ में कितने बच्चे हैं
· प्रेग्नेंसी से जुड़ी समस्याएं
कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके साथ आप सी-सेक्शन से दूरी बना सकती हैं और नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ा सकती हैं:
· अपने सभी प्रीनटल अपॉइंटमेंट जरूर अटैंड करें.
· स्वस्थ्य गर्भधारण के लिए अच्छे से खाएं और एक्टिव रहें.
· अपनी भावनात्मक और शारीरिक स्थिति को अहमियत दें.
· जानकारी लें और एंटीनेटल क्लास लें जिसके साथ आप लेबर और बच्चे के जन्म के लिए तैयार होंगी.
पसंद आपकी है, आप समझती हैं कि आप और आपके बच्चे के लिए क्या बेस्ट है. ये जरूरी है कि आप बेहतरीन निर्णय लेने के लिए अपने डॉक्टर से सलाह ले लें. हालांकि,जन्म की प्रक्रिया का निर्धारण करते हुए नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन में अंतर समझना जरूरी है. इसके साथ ही आपके लिए सुरक्षित डिलीवरी कई चीजों पर निर्भर करेगी, जैसे मेडिकल हिस्ट्री, आपके बच्चे का स्वास्थ्य और अगर कई सारी स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हों तो.
References
1. Saraf TS, Bagga RV. (2022). Cesarean section or normal vaginal delivery: A cross-sectional study of attitude of medical students. J Educ Health Promot.
2. Zakerihamidi M, Latifnejad Roudsari R, Merghati Khoei E. (2015). Vaginal Delivery vs. Cesarean Section: A Focused Ethnographic Study of Women's Perceptions in The North of Iran. Int J Community Based Nurs Midwifery.
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Parul Sachdeva
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